क्यों कोई अच्छा लगने लगता है आहिस्ता आहिस्ता, खुमार इश्क का चढ़ता है क्यों आहिस्ता आहिस्ता, सफर में ज़िन्दगी के लोग तो बहुत मिलते, दिल में बस जाता कोई शख्स क्यों अहिस्ता आहिस्ता.
हम जिनके दीवाने है वो गैरों के गुण गाते थे, हमने कहा आपके बिन जी ना सकेंगे, तो हंस के कहने लगे के जब हम ना थे तब भी तो जीते थे.
दोनों आखों मे अश्क दिया करते हैं हम अपनी नींद तेरे नाम किया करते है, जब भी पलक झपके तुम्हारी समझ लेना हम तुम्हे याद किया करते हैं.
उन्होंने अपना कभी बनाया ही नहीं, झूठा ही सही प्यार दिखाया ही नहीं, गलतियां अपनी हम मान भी जाते, पर क्या करें कसूर हमारा हमें बताया ही नहीं.
हर प्यार में एक एहसास होता है, हर काम का एक अंदाज होता है, जब तक ना लगे बेवफाई की ठोकर, हर किसी को अपनी पसंद पे नाज़ होता है.