अब तो गम सहने की आदत सी हो गयी है, रात को छुप – छुप रोने की आदत सी हो गयी है, तू बेवफा है खेल मेरे दिल से जी भर के, हमें तो अब चोट खाने की आदत सी हो गयी है.
वो खुद पे इतना गुरूर करते हैं, तो इसमें हैरत की बात नहीं, जिन्हें हम चाहते हैं वो आम हो ही नहीं सकते.
वो मोहब्बत भी तेरी थी, वो नफ़रत भी तेरी थी, वो अपनाने और ठुकराने की अदा भी तेरी थी, मैं अपनी वफ़ा का इंसाफ़ किस से माँगता ? वो शहर भी तेरा था, वो अदालत भी तेरी थी.
एक पल का एहसास बनकर आते हो तुम, दूसरे ही पल ख्वाब बनकर उड़ जाते हो तुम, जानते हो की लगता है डर तन्हाइयों से हमें, फिर भी बारबार तन्हा छोड़ जाते हो तुम.
जब रात में किसी की याद सताये, हवा जब आपके बालों को सहलाये, कर लेना आँखें बंद और सो जाना और हम आपके ख्वाबों में आ जाये.